रविवार, 21 अक्तूबर 2012

दव्न्द

प्रिय मित्रों , आज से आगाज कर रहा हूँ अंजाम खुदा जाने ! दव्न्द दो अंधों के बीच ही संभव होता हे और हम सब अन्धें हें क्योंकि भाषा तो केवल इशारे की ही हे,जो सम्पूर्ण विश्व में चराचर जगत में निर्बाध रूप में व्याप्त हे, आपने भी किसी को कभी आँख से इशारा किया होगा सामने वाला आपके बिना कुछ कहे कितना समझ गया होगा ये आप भी समझ गये होंगे ! तो मित्रों लिखने पडने बोलने की भाषा केवल दव्न्द हे, और हम मजा ले रहे हें जो की आता नहीं कंयोकी ये किसी का गुलाम नहीं आया तो आया नहीं तो मर्जी उसकी ! आज इतना ही जल्द मिलूँगा ! आकाश